कला -संस्कृति के आदान प्रदान से व्यापार के साथ साथ विश्व मे एकता और आनंद का भाव बढता है। : रंगकर्मी जीतेन्द्र शर्मा "शुभविचार
अन्तरराष्ट्रिय एम्बेसडर मीट 2024 नई दिल्ली
नई दिल्ली 16 मार्च, हर देश की संस्कृति उस देश की पहचान होती है,संस्कृति के मिटने से देश मिट जाते है, इसलिए सभी देशों को अपनी अपनी मूल कला - संस्कृति को सुरक्षित रखना चाहिए साथ ही अपनी अपनी कला - संस्कृति की प्रस्तुतियां कला साधकों द्वारा अन्य देशों में भी करनी चाहिए,यह शुभ विचार थे जयपुर के युवा रंगकर्मी व नाट्य निर्देशक जीतेन्द्र शर्मा के और अवसर था दिल्ली की पंच सितारा होटल हयात रेजिनेसी में आयोजित 39 वी अंतरराष्ट्रीय एम्बेसडर मीट 2024 का जहा विश्व के प्रमुख देशों के एम्बेसडर और भारत के प्रमुख चुनिंदा व्यापारी भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए एकत्रित होकर संवाद कर रहे थे,मीट में जयपुर की शुभ विचार संस्था के संस्थापक और भारतीय संगीत,नाटय कला और संस्कृति के शोधकर्ता जीतेंद्र शर्मा ने कला से व्यापार को बढ़ावा देने के साथ उपस्थित देशों के एंबेसडरस के बीच कला - संस्कृति पर विचार रखते हुए कहा कि हर देश की पहचान उसकी संस्कृति से होती है हमें अपनी संस्कृति को मिटने नहीं देना चाहिए,उस पर गर्व करना चाहिए, हमारी कला-संस्कृति की दूसरे देश में ज्यादा से ज्यादा प्रस्तुतियां होनी चाहिए यह नही केवल कला संस्कृति के माध्यम से दो देशों के व्यापार को बढ़ाने वाला पथ होगा बल्कि कला के माध्यम से विश्व को एकता के सूत्र में फिरोंने वाला होगा , इस से भारत के "वसुधैव कुटुम्बकम"की संकल्पना के साथ साथ "सर्वे सुखिनः भवन्तु" की कामना भी पूरी होती है,कलाएं विश्व के हर व्यक्ति के जीवन में आनंद घोलती है साथ ही एकता का संदेश भी देती है,
11 से 15 मार्च तक चली मीट में ब्रिटेन,अमेरिका,न्यूजीलैंड,ऑस्ट्रेलिया,ग्रीस,रसिया,फ्रांस, सऊदी अरब, केन्या,भूटान,जापान ,सीरिया,श्रीलंका आदि सहित विश्व के सभी प्रमुखों देशों के एंबेसडरस के साथ भारत के प्रमुख उद्योगपतियों ने भाग लेकर भारत के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चर्चा की। कला के क्षेत्र से जीतेन्द्र एक मात्र व्यक्ति थे जिन्होंने व्यापार के साथ कला को जोड़कर नही केवल विचार रखे बल्कि अपने विचारों से सभी को कार्य योजना बनाने कें लिये प्रेरित किया,
अमेरिका,रसिया,केन्या,ग्रीस आदि सहित सभी देशों के अम्बेसडरस ने शुभ विचार की इस शुभ पहल को तुरंत समझा और शुभ के स्वर में अपना स्वर मिला कर भारत के साथ कला संस्कृति का आदन प्रदान को बढ़ावा देने के लिए विचार बनाया।
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